स्वागत है तुम्हारा: चित्रा पंवार

चित्रा पंवार

मैं प्रेम कहूं
तुम समझना जीवन
मैं डरूं अंधकार से
तुम दीप जला कर
कर देना उसकी हत्या
मैं खोज लाने को कहूं प्रेम
तुम पशु, पक्षी, नदी, पहाड़, जंगल तक ले चलना मुझे
मैं प्रेम बोऊं
तुम उखाड़ फेंकना नफ़रत
मैं कविता में लिखूं किसी अनजान का दुःख
तुम रो देना फफक कर
मुझे युद्ध के पते पर लिखना
प्रेम पत्र
उनमें लिखना गेहूं, गुलाब, धान के खेतों का सुंदर दृश्य
मैं संगीत कहूं
तुम समझना हँसता हुआ बच्चा
मैं कहूं क्रांति
तुम समझना भूख
मैं कहूं मित्र
तुम किताब समझना
मैं कहूं सीख
तुम असफलताओं की जेबें तलाशना
मैं न रहूं तो मेरी याद में
लगाना खूब सारे पेड़
उसकी छांव की वसीयत प्रेमियों के नाम लिखना
मेरे प्रेम पत्र कर देना मिट्टी के हवाले
वो लौटाएगी उन्हें कई गुणा बढ़ा कर
मैं कहूं आदमी
तुम काला–गोरा, अमीर–गरीब, स्त्री–पुरुष, धर्म के फेर में पड़े बगैर
केवल आदमी ही समझना
बस पेट भरने के लिए कमाना रोटी
जीने के लिए करना प्रेम
मैं चरखे पर कातूं सूत
तुम मानवता के करघे पर समानता का गमछा बुनना
वो गलत कहें, करें
तुम विरोध में खोल देना अपनी भाषा का शब्दकोश
उनकी बंदूकों से डरे बिना खुलकर बोलना
तुम जानना मुझे मेरे नाम के पहले शब्द से
मुझे बताना
अपने नाम का सिर्फ पहला शब्द
मेरे श्रृंगार को लाना
बेहया, पुटूस के फूल
खाने को जंगली बेर, गूलर, इमली, कैथ
अगर इतना कर सकते हो तो आओ
मेरी जिन्दगी की शहराह पर
स्वागत है तुम्हारा…