हम काट रहे हैं वृक्षों को जंगल में जड़ से,
सांसें जो जीवन की खुद सब संजोये हैं
आ गई मुसीबत में धरती बहुत अब,
समृद्धि को जिस पे वो अपनी पिरोए हैं
बढ़ गया तापमान अब पृथ्वी का इतना,
कुदरत भी नैनों को अपने भिगोए है
क्यों न सोचा अभी तक ये दिल में ऐ मानुष,
वो पौधे तुम्हारी इस करनी पर खोए हैं
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश