मुझे इंतजार था
तुमसे मिलने का
ढ़ेरों बातें करने का
तुम्हे अपलक निहारने का
औऱ जब मिलने
की घड़ी आयी
पाँव बेजान से हुये
दिल की धड़कनों में
तेजी आयी
कैसे करूँ सामना तेरा
यही समझ न पायी
जैसे जैसे कदमों को उठा
जब तुझ तक मैं आयी
देखना चाहती थी जी भर
पर हया में नजरें भी उठा न पायी
ख्वाहिश जो बातें करने की थी
होठों तक को खोल न पाई
मन से तुझे चाहती रही
पर तुझे कुछ कह तक न पाई
क्या समझ पायेगा ,तू
इस खामोश प्यार के
इजहार को
मेरे इंतजार को
मेरी तड़प व मेरे एहसास को
खोयी रहती थी,
मैं बस तेरे ही ख्यालों में
याद भी मेरी
तुझे ही याद करती आई
ये सब न कह पाई
क्या तू समझ पायेगा मुझे
तुझे छूकर नही आयी
पर तेरी रूह को छू आयी
प्यार में तेरे मैं, जोगन बन आयी
पर मीरा नही हूँ मैं
जो बन्धनों को तोड़ दूँ
राधा दीवानी सी ताकत नही
जो बंशी धुन पर दौङ लूँ
मैं हूँ आज की नारी
तुझे मिलने आयी
पर बोल भी न पायी
प्यास इन आँखों की
बुझा भी नही पायी
बात दिल की पहुंचा भी न पायी
बैरन मुलाकात के लम्हे बीत गए
और एक बार फिर
बिन बोले ही
पुनः मिलन की आस लिए
अश्कों को दबा
तुझसे दूर आ गई
रूह तो वही रह गई
जिंदा लाश सी
तेरी यादों को ले
मैं तुझसे दूर आ गई
मैं तुझसे दूर आ गई
-गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान