आज कल
जब भी मैं
कोई बात तुमसे करना चाहता हूँ
हमेशा तुम
मुझसे दूर चली जाती हो
इतना दूर कि
चाहकर भी तुमको
ढूंढ न पाऊँ
हम दोनों के बीच पलता
यह नन्हा सा मौन
जोड़े रखता है हमको
अपनी बदलती भाव भंगिमाओं से
इस उम्मीद के साथ
कि आखिर जल्द ही फूटेगा
एक नया शब्द
अंधेरी गलियों मे भटके
पथिक के समान
मैं इस मनोव्यथा के
मार्ग की टोह लेना चाहता हूँ
ताकि तुम्हारी आत्मा से
जुड़े होने का एहसास कर सकूँ
-मोहित कुमार उपाध्याय
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