जब कभी जीवन में
आता है सुख-दुःख
बरसों पहले गये
पिता याद आने लगते हैं
अनायास ही
उनकी अनेक छवियाँ
आँखों के आइने में
सजीव हो उठती हैं
यादों का कारवाँ
बहुत आगे निकल जाता है
और देखते ही देखते
पिता एक पहाड़ में
तब्दील होते हुए दिखायी देने लगते हैं
मैं खुद को
पहाड़ की गोद से निकलते हुए
किसी झरने की तरह पाता हूँ
-जसवीर त्यागी