पर्यावरण प्रकृति का स्वरूप है
जीव-जंतु का जीवन आधार
मत इसको बरबाद करो
मच जाएगा हाहाकार
हरी भरी धरती है अपनी
ऊपर नीला व्योम वितान
मत छीनो हरियाली इसकी
मच जाएगा हाहाकार
कलरव करते पक्षी भी
जीवन का राग सुनते हैं
मस्त बयार के झोंके
हमको शीतलता दे जाते हैं
मत शीतलता छीनो इसकी
मच जाएगा हाहाकार
झरते नीर निर्झर के
हमको संगीत सुनाते हैं
कल कल करती सरिता भी
प्यास बुझाती जाती हैं
मत करों प्रदूषित इनको
मच जाएगा हाहाकार
मेघों से झरती बूंदे
मन को कितना हर्षाती है
हरा भरा कर वसुंधरा को
जीवन ये दे जाती है
मत छीनो सुंदरता इसकी
मच जाएगा हाहाकार
प्यारी मनोरम इस धरा
पर्यावरण ही है आधार
मत इसको बरबाद करो
मच जाएगा हाहाकार
-गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान