तु मुझे दीवाना कर दे,
या फिर कर दे पागल
आसपास बरसता रहूं,
तेरे बनके मैं बादल
उस समंदर का वासी हूं मैं,
जिस नैनों में छलके काजल
लाज की हल्की सी लालिमा,
चेहरे पे पहरा तेरा आंचल
इश्क़ की उन्माद भरी तुझ में,
नशीली नैनों से करती घायल
काश! मैं घुंघरू बन जाता,
बजता रहता बनके पायल
कोरे कागज पर बनाता रहूं,
रूप तेरा हो जाऊं पागल
तु मुझे दीवाना कर दे,
या फिर कर दे पागल
आसपास बरसता रहूं,
तेरे बनके मैं बादल
-मनोज शाह ‘मानस’
सुदर्शन पार्क, मोती नगर
नई दिल्ली