उस ज़माने में जब फोन नहीं हुआ करते थे,
हम एक-दूसरे को चिट्ठीयाँ भेजा करते थे,
आज-कल की वहशत वाला नहीं जनाब,
हम एक-दूसरे को, चिट्ठियों में प्यार भेजा करते थे,
उन ख़तों का रंग, आज भी वैसे ही सुर्ख लाल है,
वो चिट्टियों में अपने होठों का निशान भेजा करते थे,
हम दोनों की जात और धर्म, अलग-अलग थे फिर भी,
हम चिट्ठियों में, एक-दूसरे को दिल का हाल भेजा करते थे,
आज फोन तो पास है, पर कुछ कह नहीं पाते ‘खुरपाल’,
हाँ यार, हम चिट्ठियों में रूह वाला प्यार भेजा करते थे
-निशांत खुरपाल ‘काबिल’
अध्यापक
कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल, पठानकोट
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