हिंदू साम्राज्य दिवस की आधुनिक भारत में प्रासंगिकता: गजेंद्र दवे

गजेंद्र दवे
सांचौर, जालोर

“धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यो मा नो धर्मो हतोऽवधीत्॥”

यह श्लोक छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन दर्शन को पूरी तरह व्यक्त करता है। उनके द्वारा स्थापित हिंदवी स्वराज्य केवल राजनीतिक सत्ता नहीं था, बल्कि यह संस्कृति, धर्म और आत्मसम्मान की रक्षा का प्रतीक था। आज जब भारत वैश्विक मंच पर एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभर रहा है, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम अपने इतिहास और सांस्कृतिक जड़ों की प्रासंगिकता को पुनः समझें। इसी संदर्भ में “हिंदू साम्राज्य दिवस” का महत्व बढ़ जाता है।

हिंदू साम्राज्य दिवस हर वर्ष 6 जून को मनाया जाता है, जो छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक की स्मृति में मनाया जाता है। 1674 ई. में रायगढ़ किले पर उनका राज्याभिषेक हुआ था, जो उस काल के सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में एक ऐतिहासिक क्षण था। इस घटना ने न केवल एक शक्तिशाली मराठा साम्राज्य की नींव रखी, बल्कि यह भी सन्देश दिया कि भारत के लोग अपनी संस्कृति और स्वाभिमान की रक्षा के लिए संगठित हो सकते हैं।

शिवाजी महाराज का जीवन और शासन आधुनिक भारत के लिए अनेक स्तरों पर प्रेरणास्पद है। उन्होंने राज्य की अवधारणा को ‘राजा का दायित्व प्रजा की सेवा करना’ के रूप में देखा। आज जब भारत प्रशासनिक भ्रष्टाचार, राजनीतिक अवसरवाद और सामाजिक असमानता जैसी समस्याओं से जूझ रहा है, तब शिवाजी का न्यायपूर्ण, सशक्त और नैतिक प्रशासन एक आदर्श रूप में हमारे सामने आता है।

उनकी युद्धनीति, विशेषकर ‘गनिमी कावा’ (गुरिल्ला युद्ध पद्धति), सैन्य अनुशासन, किलों का निर्माण और नौसेना की स्थापना, यह सब आधुनिक सामरिक रणनीतियों के लिए भी अनुकरणीय हैं। आज जब भारत रक्षा, सीमा सुरक्षा और आतंकवाद जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है, तब शिवाजी की रणनीति और संगठन क्षमता हमें स्पष्ट दृष्टि प्रदान करती है।

 

शिवाजी महाराज के शासन की एक बड़ी विशेषता थी—धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक संरक्षण। उन्होंने हिंदू धर्म के मूल मूल्यों की रक्षा की, लेकिन साथ ही अपने शासन में मुस्लिम अधिकारियों को भी उच्च पदों पर रखा। उनके प्रशासन में न्याय, धर्म और समानता की भावना प्रमुख रही। यह दृष्टिकोण आज के भारत के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जहाँ विविधता में एकता की भावना को पुनः मजबूत करने की आवश्यकता है।

शिवाजी का राज्याभिषेक केवल व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं था, बल्कि यह भारतवर्ष के आत्मगौरव का पुनर्जागरण था। मुगल और अन्य विदेशी आक्रांताओं के लंबे शासन के बाद यह पहला उदाहरण था जब भारतीय संस्कृति और मूल्यों के अनुरूप एक स्वतंत्र राज्य स्थापित हुआ। आज जब हम स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं, तब यह आवश्यक हो जाता है कि हम केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित न रहें, बल्कि आत्मनिर्भरता, सांस्कृतिक चेतना और नैतिकता की स्वतंत्रता को भी समझें।

हिंदू साम्राज्य दिवस के माध्यम से युवा पीढ़ी को यह सिखाया जा सकता है कि इतिहास केवल अतीत का वर्णन नहीं, बल्कि वर्तमान को दिशा देने वाला साधन है। शिवाजी का जीवन एक युवा राजा की कहानी है, जिसने कठिनाइयों के बीच न केवल खुद को स्थापित किया, बल्कि पूरे समाज को प्रेरणा दी। जब आज का युवा कई बार उद्देश्यहीनता, नैतिक दुविधाओं और सामाजिक दबावों से घिर जाता है, तब शिवाजी जैसे आदर्श उसे फिर से जाग्रत कर सकते हैं।

आज का भारत आत्मनिर्भर भारत, डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया जैसे अभियानों के माध्यम से उन्नति कर रहा है। लेकिन यह उन्नति तभी संपूर्ण मानी जा सकती है जब उसके साथ सांस्कृतिक जागरूकता, नैतिकता और राष्ट्रभक्ति का मेल हो। शिवाजी महाराज का जीवन इन तीनों का संगम था। वे ना केवल योद्धा थे, बल्कि दूरदृष्टा, धर्मरक्षक और लोकनायक भी थे। उनके राज्य में महिलाओं की सुरक्षा, किसानों की भलाई, न्याय का प्रचार और धर्म की मर्यादा की रक्षा को सर्वोपरि स्थान दिया गया था।

छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा स्थापित मराठा साम्राज्य ने आगे चलकर भारत की स्वतंत्रता की चिंगारी को जीवित रखा। उनके बाद पेशवा, होल्कर, शिंदे और भोसले जैसे कई मराठा नेता इसी परंपरा को आगे बढ़ाते रहे। यह दिखाता है कि एक विचार, यदि ईमानदारी और निष्ठा से स्थापित किया जाए, तो वह आने वाली कई पीढ़ियों तक ऊर्जा और दिशा दे सकता है। इसीलिए हिंदू साम्राज्य दिवस केवल शिवाजी की स्मृति नहीं, बल्कि एक परंपरा है, एक प्रेरणा है, जिसे जीवित रखना भारत के भविष्य के लिए आवश्यक है।

आज जब समाज में पश्चिमी प्रभाव, सांस्कृतिक भ्रम और ऐतिहासिक विस्मृति बढ़ रही है, तब हिंदू साम्राज्य दिवस जैसे पर्व हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं। यह दिन एक अवसर है- शिवाजी जैसे नेतृत्व को याद करने का, राष्ट्र के लिए अपने कर्तव्यों को समझने का, और यह सोचने का कि हम किस प्रकार एक मजबूत, सशक्त और आत्मगौरव से भरपूर भारत बना सकते हैं।

अतः हिंदू साम्राज्य दिवस केवल एक ऐतिहासिक स्मरण नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य की दिशा तय करने वाला विचार है। शिवाजी महाराज का जीवन आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना वह 17वीं शताब्दी में था। उनके विचार, नीति और नेतृत्व हमारे राष्ट्रीय चरित्र को न केवल उन्नत करते हैं, बल्कि हमें आत्मबल, संगठन और संस्कृति की शक्ति का भी बोध कराते हैं।