काश- पिंकी दुबे

काश कि मैं
समझ पाई होती
तुम यूँ ही मेरा
ख्याल रखते थे
या बात कुछ और थी
क्या पता,
जिन किताबों को
तुम छोड़ आए थे, मेरे सिरहाने
उन किताबों पर लिखे जब
तुम्हारे नाम को छुई तो
कुछ अजीब…
लगा था मन को,
काश की मैं तुम्हारी
उन अनकही बातों को
समझ पाई होती तो,
आज यह हालात नहीं
कुछ और ही होता
क्या पता…

– पिंकी दुबे