खेतिहर मजदूर- निशांत खुरपाल

तेल में तली हुई
भिंडी की तरह
अधनंगे बदन में,
कर रहा है वो काम
खेत में
उतार कर्जा
खेत से बचे
मुट्ठी भर चावल बना।
उन्हें हाथ से ही खाता है
क्योंकि,
उसके घर चम्मच ही नहीं है
चम्मच तो छोटी बात है
बड़ी बात तो यह है कि
उसका घर ही नहीं है
है तो वो इंसान ही
लेकिन जाना जाता है
खेतिहर मजदूर के नाम से,

वो आया है घर से दूर
पैसे कमाने
पीछे अपना परिवार छोड़
जो उस पर आस लगाए बैठा है
बेटे को बाबा से
गुड़िया को काका से
माँ को बेटे से
पत्नी को प्रिय से
बहुत सी आसें हैं
सभी को उससे
उन्हीं अपनों की खातिर
वो कभी -कभी
भूखा ही सो जाता है,
ताकि सो सके
उसका परिवार भरे पेट
वो उगाता है अनाज
हम सबके लिए
फिर वो खुद क्यों?
भूखा ही सो जाता है

कौन बनाता है ये
अमीर और गरीब,
भगवान्?
नहीं नहीं…
क्योंकि
पिता कभी संतान को
कष्ट में नहीं देख सकता
पर इस अधनंगे बदन वाले के
कष्टों का,
कोई अंत ही नहीं है
फिर भी,
मैं जब भी उसे देखता हूँ
वो मुस्कुराता ही रहता है
किस पर?
खुद की लाचारी पर,
या समाज के स्वार्थीपन पर
मैं डालना चाहता हूँ कपड़ा
उसके नंगे तन पर,
लेकिन…
मेरा भी परिवार है

-निशांत खुरपाल
गाँव व डाक- रुडका कलां,
पत्ती हेता की, तहसील- फिल्लौर,
जिला- जालंधर, पंजाब
पिन कोड- 144031