ताज़ा गुलाब- सुधीर पाण्डेय

हमने ग़मो को सतहे-बराबर में रख दिया
यानि कि अपना नाम हुनरवर में रख दिया

काँटे सहेजने में, मेरी उम्र कट गयी
ताज़ा गुलाब किसने ये बिस्तर में रख दिया

खेमें उखड़ चले हैं, अब नींदो-सुकूँ के
कुहराम ऐसा याद के लश्कर में रख दिया

रोशन था दिल मेरा, मगर इकदम से बुझ गया
ऐसा क्या रब ने, टूटते अख़्तर में रख दिया

दिल ने तेरे दिमाग की, कब-कब सुनी व्यथित
किस्मत ने मुद्दई तो, तेरे घर में रख दिया

-सुधीर पाण्डेय व्यथित