दो कवितायें- शिप्रा खरे शुक्ला


महक
कुछ कम है..
चाँदनी आज
सूरज भी
धुंधला था सुबह
सितारों की चमक भी
फीकी पड़ी है
फिर भी…
महक और कसक
दबाये नहीं दबती
तो रजनीगंधा जम के महकेंगे
और हरसिंगार
झरेंगे रात भर
तुम्हारे इंतजार की
आस लिए…

राई के पहाड़

वो जो बनाते हैं
राई के पहाड़
और चढ़ते है धूप में
बर्फ के जीने
हसरतें हरी हैं जिनकी
तालाब की काई के जैसी
वही दिखाते हैं तुमको भी
कांच के सपने
मिठास के नश्तर से
तुम्हारी अक्ल काट कर
उड़ेलते हैं कानों में
ज़हर भी वही
कि तुम उगलो लावा
जला डालो अपने ही परचम
और आक होने से पहले ही
हो जाओ राख….

-शिप्रा खरे शुक्ला
खीरी, उत्तर प्रदेश