भगवान हो चले- तारांश

लबादा ओढ़कर इंसानियत का शैतान हो चले
इतने अंधे हुए खुदगर्ज़ी में कि बेईमान हो चले

नाश धरती का कर दिया तुम्हारे जीतने की चाह ने
क़हर कुदरत का है कि आज घर श्मशान हो चले

फ़र्ज़ था इंसान के नाते मदद करते गरीबों की
पाए क्या दो पैसे तुमने अहं में भगवान हो चले

चुनावी दौर में तूने बिठाया पलकों पर मालिक
आज रोटी की बात पर तुम तो अंजान हो चले

वादा किया था इसी ज़मीं पर मकाँ बनाने का
पैर टिकते नहीं यहाँ अब तुम आसमान हो चले

मुल्क़ में और भी मुद्दे हैं हिंदू-मुस्लिम के सिवा
शिक्षा-स्वास्थ्य के सवाल पर तुम बेजान हो चले

-तारांश