ये कैसी रिश्तेदारी- आशा दिनकर

स्वार्थ के हो रहे रिश्ते हो रही रिश्तेदारी
घर-घर बेघर भटके, सच्ची ईमानदारी

काम हो अगर तुमसे, मीठा ही बोलेंगे
बिना काम जुबान हो जाए तेज कटारी

भला हो समय जब, भले बने सब लोग
बिगड़े हो काम तब कोई न हिस्सेदारी

कह गये ज्ञानी, ध्यानी जान लीजिये आज
मित्र वही, सच्चे जिसे कदर हो तुम्हारी

-आशा दिनकर
नयी दिल्ली