मैं नहीं जानता: प्रार्थना राय

कितना सरल है ना
सब कुछ कर धर कर कह देना
मैं नहीं जानता

तुमने ये बात
उस समय कही थी
जिस वक्त मेरा धैर्य
किसी नदी की भांति उफान पर था

जिस प्रकार नदी
अपनी धाराओं को
आँचल में समेट कर
किनारों को बचा लेती है

ठीक उसी प्रकार
अपने धैर्य के साहस का
परिचय देते हुए अपनी शब्द शैली से
तुम्हारी नीयत की गति को बाधित करना है

तुम्हारे खोखले विचारों को
अप्रमाणित करना और
मानवता के कगार को
सुरक्षित करना ही हमारा उद्देश्य है

हमारे समाज में
विचित्र प्रकार की शंकाओं को
जो तुमने लादा है
उन्हें जड़ीभूत करना है

हमें स्वयं की
असुविधाओं का ज्ञान नहीं
परन्तु सन्देहास्पद तरीके से
तुमने दुर्व्यवस्था का जो इतिहास रचा है

हवाओं को फिजाओं से
नदियों को किनारो से
धर्म को धर्म से दूर करने का
असफल प्रयास का तुमने इतिहास रचा है

तुमने समूचे शरीर पर
जो रंजिशों का लेपन किया हुआ है
मानवता की बारिश में
एक ना एक दिन दह जायेंगे

बार बार मांँ के
दूध भरे आँचल को
भेदने का प्रयास जो तुमने किया
तुम सदैव असफल रहोगे

जहाँ पलता प्रेम
जहाँ की भूमि सजती है अनेक
धर्मो की आवृत्तियों से
और मौज करती अनगिनत भाषाएँ

यहां असमानता के
विरवा का रोपन किस लिए
हमारी पुष्पित बगिया में
कांटो की उपज को पोषित करना किस लिए

दरअसल समझना तुम्हारा काम है  
तुम्हारी नीयत को मानवता की
परखनली में शोधना मेरा  काम है
और ये निम्न बात है कि ‘मैं नहीं जानता’

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश