आ तुझे ऐसे रंग लगाऊं मैं: अतुल पाठक

खूबसूरत गुलाबी रुख़सार हैं तेरे,
रुख़सार पर बिखरे बाल ये तेरे

तुझे छूकर देखा,
लगती तू गुलाल हो जैसे

इस रंगोत्सव पर प्यार के रंग,
रंग जाऊं गर तू दे दे संग

वो इंतिज़ार न जाने कब होगा खत्म,
तू आए ख़ुशी प्यार लुटाए तो न कोई होगा ग़म

वो मस्ती शरारत आंखों की,
आंखन बिच बात इशारों की

तेरी झलक लगे रंगोली सी,
तू साथ है तो खेलें होली होली सी

चुटकी भर रंग लगाने दे,
रुख़सार पर प्यार का रंग रंग जाने दे

थोड़ी ज़िद पूरी कर लेने दे,
रंगो-गुलाल से अंग-अंग रंगने दे

क्यों छिपती है शरमाती बलखाती है,
हूरों की रानी होरी के रंगों में क्यों न आती है

आ तुझे ऐसे रंग लगाऊं मैं,
होली को प्यार से यादगार बनाऊं मैं

अतुल पाठक
हाथरस, उत्तर प्रदेश