एक कश ज़िन्दगी का: हर्षिता दावर

दर जो टूटा है, अंदर समा रहा है
एक कश ज़िन्दगी का अंदर सता रहा है
भरा हुआ जो मन मौन हो रहा है
आह, मेरे दिल को आदत बना रखा है
ज़ुबान खामोशी में आवाज़ लगा रहा है
छू मत मुझे जिंदगी बड़ा संभल रखा है
आँखों में समुद्र को ठहराव दिखा रखा है
भरे गले में खराश मिटाने घूंट बचा रखा है
दोहरापन जिंदगी में शामिल हो रहा है
मन की दशा होंठों की सिलवटों में दिखा रखा है
सच्ची हो या झूठी हँसी में दबा रखा है
ना छू मुझे जिंदगी बड़ी मुश्किल से आसान बना रखा है
ना पूछ मुझसे कुछ जख्मों को मरहम बना रखा है
नब्ज ना थम जाए हर सांस को बचा रखा है,
वक्त अपनी मर्ज़ी से पिछड़े हुए
ज़माने के बिछड़े हुए रिश्तों का
क्यूं हर बार सामना करवा रहा है?

मेरे जिस्म से रूह की प्यास बुझती नहीं
क्यों मुझे प्यासा बना रखा है
मेरे दर्द को हराम करार कर रखा है
इस रंग बदलती दुनिया में
सम्मान मांगती औरत को समझौता बना रखा है
ना छू मुझे जिंदगी बड़ी मुश्किल से आसान बना रखा है
ना मिल रहा मुझसा जो दिल में छुपा रखा है,
मेरी नींद खुली आंखों में चुभता सपना बसा रखा हैं
रोज़ टोक कर टूट जाती हूं
समेटती टुकड़ों को मां बना रखा है
कुछ चूक गया क्या और लिखूं मेरी जान बाक़ी रह गई
क्या जीना मरना लगा रखा हैं,
अब माफ़ी चाहती हूं जिंदगी
खुश सी बड़ी नदी में प्रवाहित अपने जिस्म को सुला रखा है
अब दिल की जगह नया दिल छाती से खरोंच दल-दल में लिपटा रोया है
हर बार मैंने किया समझौता
ऐ वक्त क्या वाकई गमगीन चेहरे पर दरारें गिनवा रहा है
साया मेरा छाया बन मेरे हिस्से के पीछे भागते दर्द को
एक मूरत में ढाल बुत बना रखा है
ना छू मुझे ज़िन्दगी बड़ी मुश्किल से आसान बना रखा है

हर्षिता दावर