मन की सूनी बस्ती: प्रार्थना राय

गीली अँखियां झाँक रही है
मन की सूनी बस्ती में
स्पंदित हो हृदय कह रहा
आओ झमकत सावन में

भूल गये क्या बातें-वाते
जो तुमने कही थी होत सकारे
छूटा नेह का बंधन तेरा
खड़ी आज प्रतीक्षा दुआरे

तुम बिन मनवा भँवरा बनकर
फूल-फूल पर तोहे निहारे
एक बार जो तुम मिल जाते
सुनाती हाल हृदय के सारे

कच्ची नहीं मेरे प्रेम की डोरी
जिसे अश्रु धार तोड़ पावे
रूठी किस्मत टूटा दर्पण
कोई भला किससे जुड़वावे

लूट रहा कोई सपनों की बगिया
भ्रमित मन धीर ना धरे
मीत मेरे सून मन को
रतियाँ नाग बन डेरवाये

थाम जरा मुझको आकर
जिय की बतियाँ ले रही लहरिया
संकोचों की उलझन में
आहत हिया अब अकुलाये

भटक रहे हैं आकुल नैना
अंजन बना शूल किनारा
अन्तर्मन के आकाश में छाओ
अमिय बूंद की मधु बदरा

नयन किरकिरी से भर जाये
जब प्रियतम तेरी याद सतावे
सुनो कन्हैया कहती प्रार्थना
सुन लो मेरी अरज साधना

प्रार्थना राय
ग्राम-पोस्ट- गौरा
जनपद- देवरिया, उत्तर प्रदेश