हरिशंकर परसाई जन्मशती वर्षारम्भ समारोह: कविता का समाज बनाना जरूरी

विख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई जन्मशती वर्षारम्भ के अवसर पर रानी दुर्गावती संग्रहालय की कला वीथ‍िका में पहल एवं सविता कथा सम्मान समिति के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय कथा कविता प्रसंग के समापन दिवस पर कविता सत्र में विख्यात हिन्दी आलोचक डॉ ओम निश्चल ने समकालीन कविता पर वक्तव्य देते हुए कहा कि कविताएं तो लिखी जा रही है लेकिन कविता का समाज नहीं बन पा रहा है। जरूरी है कि कवि विषय के बीहड़ में प्रवेश करें तभी सार्थकता सिद्ध होगी। कवियों को कविता लिखने के दौरान पेटर्न से बचना होगा।

भोपाल की नेहल शाह की रंगों और मठकों पर केंद्रित कविता को श्रोताओं ने सराहा। जबलपुर की श्रद्धा सुनील ने स्त्री केंद्रित गंभीर विषय पर कविता पाठ किया। जबलपुर के कवि विवेक चतुर्वेदी ने ‘एक बिरहमन ने कहा है ये बरस दोस्त है’ ‘कविता में बसन्त’और ‘स्त्रियाँ घर लौटती हैं’ शीर्षक कविताओं का पाठ किया। अंबिकापुर की मृदुला सिंह ने आदिवासियों के जीवन पर आधारित कविताओं का पाठ किया। दिल्ली की लीना मल्होत्रा की कोरोना विषयक कविता महत्वपूर्ण रही। देवास के बहादुर पटेल ने उस ने एक चित्र बनाया, नाई, रेवट, गिरह शीर्षक कविताओं का पाठ किया।

कार्यक्रम में संयोजक राजेन्द्र दानी, राजीव कुमार शुक्ल, अरुण पाण्डेय, रमेश सैनी, चंद्रशेखर विश्वकर्मा, हरदीप कौर, आभा दुबे, अलंकृति, इंदु श्रीवास्तव, निशांत कौशिक, मुरलीधर नागराज सहित साहित्यिक, सांस्कृतिक व कला क्षेत्र के अनेक लोग उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन पंकज स्वामी और आभार प्रदर्शन शरद उपाध्याय ने किया।