व्यक्तित्व का विकास: प्रार्थना राय

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश

रूप, रंग, पद, आकर्षण अपने निर्धारित समय पर समाप्त हो जाना है, रह जाना है केवल और केवल अपना व्यक्तित्व। हम अपने जीवन में कुछ नियमों का अनुपालन करें तो निश्चित रूप से हम अपने व्यक्तित्व का सफल एवं सार्थक निर्माण कर सकतें हैं।

सबसे महत्वपूर्ण बात ये कि हम मानवता को स्वयं के भीतर स्थापित करें, हम मनुष्य होकर मनुष्य के भावों को ना समझ पायें तो हमें मनुष्य होनें से क्या लाभ।हम भले ही शिक्षा के उच्चतर शिखर को प्राप्त कर लें, प्रत्येक क्षेत्र में सफल हों, लेकिन जब हमारा व्यक्तित्व ही प्रखर नही होगा तो ऐसी शिक्षा का क्या अर्थ रह जाएगा। हमें अपने व्यक्तित्व को प्रत्येक क्षेत्र में शक्तिशाली बनाना है।

हमारे अंदर तीन ऐसी अदृश्य शक्तियां हैं, जिसके माध्यम से अपने व्यक्तित्व को संवार सकते हैं या तो व्यक्तित्व का नाश भी कर सकते हैं। वो तीन अदृश्य शक्तियां हैं मन, अहंकार और बुद्धि। अब ये स्वयं पर निर्भर है कि हमें क्या करना है।

मन जो सदैव भौतिक सुख सुविधा के पीछे भागता है और परिवर्तित होता रहता है। अहंकार जो नाश का मुख्य कारण है और बुद्धि जो हमें सत्य का मार्ग दिखाती है लेकिन ये भी सत्य है, बुद्धि का नाश भी मन और अहंकार के कारण ही होता है।

इसलिए जीवन के उस आनंदस्वरुप को प्राप्त करना होगा, जहां से शान्ति का प्रकाश प्रकाशित हो। हमें लोभ के बंधनों से मुक्त होकर स्वच्छ चरित्र का निर्माण करना होगा। हमें स्वयं के व्यक्तित्व के विकास और दूसरों की भलाई की भावना से ओतप्रोत होकर समाज में मानवता को पुनर्स्थापित करना होगा। हमें अपने अहंकार का त्याग कर विवेक को संगठित करना होगा एवं मधुर व्यवहार की दिव्यता को ऊर्जावान बनाकर मानवीय व्यक्तित्व को धारण करना होगा।

हमें अनंत शक्तियों का साधक बनना होगा। आध्यात्मिक ज्ञान को जागृत करना होगा। प्रेम, सहयोग, एकता, भाईचारा और मानवता, जो हमें निजी रूप से शक्तिशाली बनाती है, इसका अनुसरण करना होगा। साथ ही जात-पात धर्म के अंधविश्वास से बाहर निकल कर अपने भीतर मधुर भावों को संतुलित करते हुए अपना विकास स्वयं करना है। हमें परम ज्ञान की प्राप्ति तभी संभव हो सकती है जब हमारे व्यक्तित्व का विकास पूर्ण रूप होगा।

हमारे जीवन की पूर्णता तब तक पूर्ण नहीं हो सकती जब तक हमारा व्यक्तित्व अस्तित्व में न आये। शरीर का अंतिम लक्ष्य नाश होना है, परन्तु व्यक्तित्व ही अमरत्व का प्रतीक है, जो हमारे ना रहने पर भी हमें जीवित रखता है। वास्तविकता के आधार पर देखा जाए तो सफल व्यक्तित्व आत्मा की तरह पवित्र और अमर होता है।