दीपोत्सव: धनतेरस पर जरूर जलाएं दक्षिण दिशा में दीया, त्रिपुष्कर योग में करें खरीदारी

मंगलवार 2 नवंबर को धनतेरस के साथ ही पाँच दिवसीय दीपोत्सव का आरंभ हो जाएगा। धनतेरस के दिन चिकित्सा के देवता धन्वंतरि के पूजन के साथ ही धातु के गहनें और बर्तन खरीदना शुभ माना जाता है। इस दिन नये कपड़े भी खरीदे जाते हैं।

हिंदू शास्त्रों के अनुसार भगवान धन्वन्तरि जब प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत से भरा कलश था। भगवान धन्वन्तरि चूंकि कलश लेकर प्रकट हुए थे इसलिए ही इस अवसर पर बर्तन खरीदने की परम्परा है। धनतेरस के दिन चांदी खरीदने की भी प्रथा है। इसके पीछे मान्यता है कि चांदी चन्द्रमा का प्रतीक है, जो शीतलता प्रदान करता है और मन में संतोष रूपी धन का वास होता है।

लोग इस दिन ही दीपावली की रात लक्ष्मी गणेश की पूजा हेतु मूर्ति भी खरीदते हैं। धनतेरस की शाम घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाने की प्रथा भी है। पौराणिक मान्यता के अनुसार धनतेरस की शाम यम के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाकर रखता है उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है।

धनतेरस के दिन दीप जलाककर भगवान धन्वन्तरि की पूजा करें। भगवान धन्वन्तरी से स्वास्थ और सेहतमंद बनाये रखने हेतु प्रार्थना करें। चांदी का कोई बर्तन या लक्ष्मी गणेश अंकित चांदी का सिक्का खरीदें। नया बर्तन खरीदे जिसमें दीपावली की रात भगवान श्री गणेश व देवी लक्ष्मी के लिए भोग चढ़ाएं।

ऐसी मान्यता है कि समु्द्र मंथन के दौरान भगवान धनवंतरी और माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था, यही वजह है कि धनतेरस को भगवान धनवंतरी और माँ लक्ष्मी का पूजन किया जाता है। धनतेरस के दिन विभिन्न प्रकार की धातुओं से बने बर्तनों को खरीदते हैं। बुद्धि, सौभाग्य, समृद्धि, संपदा प्राप्त करने के भाव से ज्यादातर लोग सोने-चांदी, तांबा और अन्य धातुओं के बर्तनों की खरीदते हैं। इसके अलावा धनतेरस के दिन लोहे के बर्तन, कांच के बर्तन खरीदने से बचना चाहिए।

ज्योतिषाचार्यों के अनुसार धनतेरस को धन त्रयोदशी भी कहा जाता है। इस बार धनतेरस पर त्रिपुष्कर योग बन रहा है। इस योग में खरीदी गई हर छोटी-बड़ी वस्तु में तीन गुना वृद्धि होगी। यह त्रिपुष्कर योग तिथि, वार और नक्षत्र के संयोग से बना है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार इस दिन प्रात:काल द्वादशी तिथि है। इसके बाद मंगलवार और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है। इस तरह यह त्रिपुष्कर योग बना है. इस योग में किया गया कार्य तीन गुना फल देता है।

शुभ मुहूर्त-

गोधूलि मुहूर्त- शाम 5:05 बजे से 5:29 बजे तक।
प्रदोष काल- शाम 5:35 बजे से 8:14 बजे तक।
अभिजीत मुहूर्त– सुबह 11:42 बजे से 12:26 बजे तक।
त्रिपुष्कर योग-  सुबह 6:06 बजे से 11:31 बजे तक। इस योग में खरीदारी बहुत ही शुभ रहेगा।
धनतेरस मुहूर्त- शाम 6:18 बजे से 8:11 बजे तक।
उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र- सुबह 11:44 बजे तक रहेगा।
हस्त नक्षत्र- सुबह 11:45 बजे से 3 नवंबर की सुबह 9:58 बजे तक रहेगा। 

पूजा विधि-

घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) को अच्छे से साफ करें और वहां पर लकड़ी की चौकी बिछाएं। अब उस चौकी पर एक लाल रंग का कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान धन्वन्तरि की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें, साथ ही गणेश भगवान की भी तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें। लकड़ी की चौकी की उत्तर दिशा में एक जल से भरा कलश स्थापित करें और उस कलश के ऊपर चावल से भरी कटोरी रखें।

अब उस कलश के मुख पर कलावा बांधे और रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। इस प्रकार मूर्ति और कलश स्थापना के बाद भगवान का आह्वान करना चाहिए। फिर सबसे पहले गणेश जी की और फिर भगवान धन्वन्तरि की विधिवत पूजा करनी चाहिए। पहले गणेश जी और धन्वन्तरि जी को रोली-चावल का टीका लगाएं। उन्हें गंध, पुष्प अर्पित करें, साथ ही फल और मिठाई चढ़ाएं। इसके बाद भगवान को भोग अर्पित करें।

भोग के लिए दूध, चावल से बनी खीर सबसे अच्छी मानी जाती है। फिर भोग लगाने के बाद धूप, दीप और कपूर जलाएं और भगवान की आरती करें। साथ ही संभव हो तो भगवान धन्वन्तरि के मंत्र का जाप करें।

ॐ नमो भगवते महासुदर्शनाय वासुदेवाय धन्वंतराये:
अमृत कलश हस्ताय सर्वभय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय
त्रिलोकपथाय त्रिलोक नाथाय श्री महाविष्णु स्वरूप
श्री धन्वंतरी स्वरूप श्री श्री श्री औषधचक्र नारायणाय नमः॥