आ चल चलें हम वहाँ: संजय कुमार राव

झीलों की कलकल
सांसों की सरगम
नीला गगन हो जहाँ
आ चल चलें हम वहाँ!

तारों की झिलमिल
चंदा की आभा
चंदन सी शीतल हवा
आ चल चलें हम वहाँ!

शबनम की बूंदें
दूबों की चादर
सपनों का सुंदर समां
आ चल चलें हम वहाँ!

परियों के डेरे
बादल घनेरे
खुशबू का हो आशियां
आ चल चलें हम वहाँ!

पीपल की छैयां
मंदिर की घंटी
मंत्रों की धुन हो जहाँ
आ चल चलें हम वहाँ!

ना कोई दूरी
ना कोई कटुता
ऐसा बसाएं जहां
आ चल चलें हम वहाँ!

संजय कुमार राव
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