नया नहीं हूँ मैं,
तुम्हारे लिए,
नयी सभ्यता के साथ
मेरा भी जन्म हो गया था
और तब से हूँ तुम्हारे साथ
पल प्रतिपल
जब से
नये जमाने की हवा लगी,
तभी से
आइसोलेशन में रहना
कितना प्रिय है तुमको
याद है,
कितने रिश्तों को
तुमने कोरेंटाइन किया है
बरसों बरस के लिए?
कुछ तो,
वेंटीलेटर पर भी आ गए
कुछ तो, मर भी गए लावारिस मौत
अपने घर तक आने वाली
हर गली, हर सड़क को,
कितनी बार
लॉकडाउन किया है तुमने
और सोशल दिखने की
पीपीई किट पहने हुए भी
कितनी गंभीरता से
सोशल डिस्टेंसिग का पालन
किया है
और जब कभी
निकले भी गलियों में
तो
अपने फेस को
कवर किया है हमेशा,
ताकि कोई अपना वाला
पहचान ना ले तुम्हैं कहीं:
और इसके बाद भी
कोई पहुँच ही गया है तुम तक
तो बार बार तुमने
खुद को सैनिटाइज किया है,
सैनिटाइजर से,
धोए हैं हाथ,
कि कहीं
चिपक के रह ना गया हो
हाथ में
अपनेपन,
प्रेम,
ममता का कोई जानलेवा विषाणु
हाँ,
इस लॉकडाउन को तुमने
भली भाँति जिया है बरसों बरस
-मुकेश चौरसिया
गणेश कॉलोनी, केवलारी
जिला सिवनी