युग बीते कितने शायर कवि आये
मौशिकी के असंख्य सुर सजाये
कोष अक्षय जिनके न कभी रीते हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
रिमझिम में मैंने बरसाये
बहारों संग है गुनगुनाये
आसमान मेरे भरे के भरे हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
एक बजा तो दूजे की धुन छा गई
दीप से दीप जले रौशनी ना गई
बिखरे मोती चंद ही समेटे हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
सुख दुःख संग मेरे चले
दुआ बंदगी में रचे बढ़े
छाँव धूप के रंग रंगे हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
जाने कहां से मुझ तक आते
अंजानो को भी अपना बना जाते
भेद इनके मेरी सामर्थ्य से परे हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
इनमे गंगा यमुना सरस्वती समाती
प्रकर्ति इनसे ही लय सुर ताल पाती
घट-घट इनके अमृत कलश बिखरे हैं
गीत मेरे अभी अधूरे हैं
-डॉ प्रतिमा विश्वकर्मा ‘मौली’
कवयित्री, लेखिका, व्याख्याता भूगोल,
आमानाका, कोटा,
रायपुर,छत्तीसगढ़