धवल शुभ्र तुंग से निखर,
रवि किरणें पड़ती जब धरा
खिल उठे वन उपवन सारे,
जीव जगत में तब हो उजियारा
खेतों में लहलहायें जब फसलें,
ओढ़े वसुधा तब धानी चुनरिया
कल कल कर जब सरिता बहती
छलकाए प्रकृति तब प्रेम गगरिया
कानों मे रस घोले कोयल प्यारी,
करे, मदमाये आम्र कुंजो में विचरण
कानन,कानन तब बाजे झांझ मृदंगा,
सुरभित मुखरित हो हमारा पर्यावरण
सौंदर्य प्रकृति की और निखर जाती,
करते जब हम सब इसका संरक्षण
विकसित पथ चल करता मानव प्रहार,
कराहती विचलित सृष्टि का होता क्षरण
करे मानुष जब नियति से छेड़छाड़,
और धरती पर बढ़े जब अत्याचार
अकुलाती धरा तब न धरती धीर जरा,
आते हैं तब ही वसुधा पर प्रलय भयंकरा
रोपित करें चलो आज बीज एक,
आयेंगे तब कल उनमें पक्षी अपार
खिल उठेगा अपना भी मन उपवन,
स्वच्छ सुरभित जब चलेगी बयार
-अन्नपूर्णा जवाहर देवांगन
महासमुंद, छत्तीसगढ़