घट घट में हैँ राम बसे
कण कण में हैं कृष्ण
व्याकुल मन अब चाहे
खुल जाए तेरे पट
कान तरस गये भगवन
तेरे भजनों की तान को
श्रद्धा भाव से झुकता शीश
तेरे उस द्वार को
कब सुनने को मिलेगी
मधुर आरती की धुन
तेरी मधुर छवि को तरसे
अब तो अधीर अंतर्मन
पुष्प की भी अभिलाषा
चरणों में तेरे सजे
तेरे दीयों की ज्योत को
नैंना भी हैं तरसे
सब तो खुला दिया कान्हा
तेरा दर खुलवा दे
मंजुल मधुर मूर्ति के
दर्शन तो करवा दे
सृष्टि की हर रचना में तू
अंर्तमन में समाया
पर तेरे दरस को भगवन
व्याकुल मन तड़प आया
भक्तों की पुकार को सुन
दर तेरा खुलवा दे
प्यास बुझे नैनो की फिर
छवि तेरी दिखला दे
-गरिमा राकेश गौतम
कोटा, राजस्थान