लगता है ज़िन्दगी से वह ऊब गया
तभी तो मेरी मोहब्बत में डूब गया
औरों से अलग था हर अन्दाज़ मेरा
सब उत्तर की ओर तो मैं जनूब गया
जीने की ज़िद में मरता नहीं है हौसला
न जाने कितनी बार मसला दूब गया
इश्क़ में भुला दिया था जिसने खुद को
सुना है कि भूल उसको महबूब गया
लिखा था बहुत ही कम तेरे ‘कौशिक’ ने
लेकिन पढ़ा उसको बहुत ख़ूब गया
-आलोक कौशिक
मनीषा मैन्शन,
बेगूसराय, बिहार, 851101,
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