तुझ पर लिखी शायरी के किस्से, भुलाये नहीं गये,
कुछ गीत अभी भी बाकी हैं, जो गुनगुनाये नहीं गये
तुझे तो शरीर के ज़ख्म देख, चक्कर आ गये
रूह के ज़ख्म तो बाकी है, जो तुझे अब तक दिखाए नहीं गये
मेरे क़त्ल की साज़िश में, शामिल तो तू भी था,
तेरे खिलाफ़ जो थे बयान, वो अदालत में मुझे बतलाये नहीं गये
ज़माना तो हमें ही काफिर समझे हुआ बैठा है,
तेरी तरह गुनाह करके, हमसे सबूत मिटाये नहीं गये
ठहर गये थे मेरी आँखों में, तेरे रुख़सत होते वक़्त,
कुछ आँसू, जो अब तक ‘खुरपाल’ से बहाये नहीं गये
-निशांत खुरपाल
फिल्लौर, जालंधर,
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