आफतों से भरा यह वर्ष
ना कम था किसी नरक से,
जिसे मानव ने बोया
और कुदरत ने पिरोया,
कहर ना रहा सीमित,
ना बच्चा देखा ना बूढ़ा
लिया चपेट में सबको,
कहते है वो था करोना
जो पीता गया सबको
ना धूप देखी ना छांव
बस चल पड़ा उस राह,
मंज़िल तो थी पर रास्ता कहीं उलट गया,
पटरियों पर चलता चलता
किस्सा ही पलट गया,
यह तो थी एक बीमारी ,
जो पड़ी सिर्फ गरीबों पे भारी,
जिस्मों की बीमारी से
पड़ा इस कदर रोना,
अब कहा गया करोना?
आशियानों में बैठे हो रहे हो तंग,
निकले बाहर और चलो मीलों तक दूर,
जब तक करोगे तुम कुछ विचार,
मिलेगी तुम्हें रोटियां लाचार,
उसका क्या था कसूर?
थी माँ वो भी आजन्मे बच्चे की,
अरे मूर्ख जान तो जान है
क्या पशु, क्या इंसान है,
निवाले में की बेईमानी
बेरहमी से की खतम कहानी,
होगा तेरा एक कदम चार हो गए मेरे,
आएगा ऐसा तूफान, तेरे चार फेरे,
जब हो गई इतनी मनमानी
फिर कुदरत ने यह है ठानी
समय तय टेक्नोलॉजी ना कर पाएगी,
दस्तक की आवाज़ कहीं ना सुन पाएगी,
थी यह हमारे आधे वर्ष की कहानी,
क्या पड़ेगी बाकी भी ऐसे ही निभानी,
कैसे रखूं अपने भाव
टूट चुकी है अब यह आस,
करूँ उस रब की ओर इशारा
तोहफ़ा मिले ना ऐसा दोबारा
-पूजा पनेसर
लुधियाना, पंजाब