इजाज़त तेरी गर मिले तो होली पे रंग लगा दूँ मैं
शायद इसी बहाने ही फिर गालों को सहला दूँ मैं
काश कि फिर से लौट आयें वो फ़ागुन वाले दिन
तू मेरे कंधे पर सर रख के सोये सारी रात पहरा दूँ मैं
होली के हुड़दंग में तेरी चुनरी लेकर भागे फिर से हम
और दौड़कर पास तू जैसे ही आये हवा में लहरा दूँ मैं
बच्चों की पिचकारी से रंग बिरंगी होकर भी बचती घूमें तू
झटसे पकड़ूँ,तेरे होठों को चूमकर रंग और भी गहरा दूँ मैं
देखके ये शैतानी को मेरी फिर गली में शोर मचायें सारे बच्चे,
भागे तू शर्माकर फिर झटके से पकड़ के उँगली ठहरा दूँ मैं
लौटें फिर से बचपन के दिन सभी दोस्तों के संग खेलें हम
तालिब काश कि ईद और ये होली भी फिर वैसे मना लूँ मैं
-तालिब मंसूरी
लक्ष्मी नगर, दिल्ली
मोबाइल- 7860247454