क्यूं उलझा रक्खा है सबको?
ये मसले सुलझा क्यूं नहीं देता?
तेरी आरजू में मर मिटे हैं,
तुझे चाहने वाले लोग,
किसी रोज़ तू अपना जलवा,
क्यूं दिखा नहीं देता?
भटक रहें हैं इधर उधर,
एक ही मंजिल के सभी लोग,
इन सबको सही रस्ता,
क्यूं दिखा नहीं देता?
सब तेरे ही बंदे है,
तू ही है सबका मालिक,
किसी रोज़ ये हकीकत,
क्यूं बता नहीं देता?
जब काबा भी तेरा है,
और काशी भी तेरी है,
फिर ये दैरो-हरम के झगड़े,
क्यूं मिटा नहीं देता?
-डॉ एस. शेख