चुन लेने दो सुंदर शब्दों को,
निज भाषा का पैगाम है ये
मन मंदिर में उपजा है जो,
कितना रोचक काम है ये
शब्दों को समायोजित करना,
कवियों की पुरानी आदत है
कागज पर कुछ अंकित करना,
कलमकार की चाहत है
पल-पल बनते भावों का,
सार भरा सैलाब है ये
मन मंदिर में उपजा है जो,
कितना रोचक काम है ये
सपनों में ही न खो देना,
जज्बात भरी ये दुनिया
सूरज से चांद मिला देना,
टूटे न विचारों की लड़ियां
गूढ़ ज्ञान के सागर का,
रग रग में बसा संसार है ये
मन मंदिर में उपजा है जो,
कितना रोचक काम है ये
शब्द कोष तैयार करे जो,
नहीं जनता माने
कहां कौन सा शब्द लगे,
विचारवान ही जाने
अच्छे वचन निकालो अपने,
ज्ञान की पहचान है ये
मन मंदिर में उपजा है जो,
कितना रोचक काम है ये
-रामसेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां
कानपुर देहात, उत्तर प्रदेश