आज विश्व पर संकट छाया, रक्षा करना हे शिव शंकर
घर के अंदर दुबके बैठे, विकट त्रासदी से सब डरकर
तालाबंदी के चलते अब, रोजी बिन खाने के लाले
आग पेट की मचल रही है, खाने को दो-चार निवाले
उम्मीदों की किरण न दिखती, अजगर-सा तम बैठा जमकर
आज विश्व पर संकट छाया, रक्षा करना हे शिव शंकर
रोज नापना डगर डगों से, मजदूरों की है मजबूरी
जीवन और मौत में जैसे, बची एक गज की बस दूरी
दुर्घटनाएँ खड़ीं सामने, घर पहुँचेंगीं साँसें मरकर
आज विश्व पर संकट छाया, रक्षा करना हे शिव शंकर
कालचक्र ने करवट बदली, खेल नियति ने ऐसा खेला
चीख, पुकारें, आहें, तड़पन जहाँ लगा था कल तक मेला
लगने लगा आज घर पिंजरा, ऊबे दूर स्वजन से रहकर
आज विश्व पर संकट छाया, रक्षा करना हे शिव शंकर
साँसें घुटतीं अंदर-अंदर, व्यथा-कथा जा किसे सुनाएँ
कब तक दुसह पीर सहकर हम, निज जीवन की डोर बचाएँ
बना हुआ शमशान सकल जग, देख-देख सब काँपें थर-थर
आज विश्व पर संकट छाया, रक्षा करना हे शिव शंकर
-स्नेहलता नीर