क्यों भारत में जलती रहती, सदा सुहागन नारी है
जनमानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है
पुत्र जन्म लेते ही घर में, लहर खुशी की छा जाती
लेकिन कन्या इस धरती पर, एक समस्या बन जाती
पाल पोष कर किया सयाना, पढ़ने में भारी पड़ती है
पास पिता के नहीं है पैसा, इस पर कुंवारी रहती है
पीले कैसे हाथ करें वे, घर में चिंता भारी है
जनमानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है
रोज सुबह एक नई खबर, आती है अखबारों में
मांग के खातिर नारी बिकती, पुरुषों के बाजारों में
भूखी नजरें कोमल काया, सिसकी गुमसुम रहती है
लाज बचाने को पल-पल वह, यों ही घुटती रहती है
दहेज नहीं यह दानव भारी, मारे अबला नारी है
जनमानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है
धन वालों की इस दुनिया में, निर्धन बैठे रोते हैं
जिनके घर में सजी बारातें, वे ही सब कुछ खोते हैं
डोली सजकर इक बाला की, साजन के घर जाती है
किंतु दहेज के कारण वह, पल पल पीड़ा पाती है
भूखे रह कर देती खुशियां, फिर भी उन से हारी है
जनमानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है
इस दुनिया से दूर भगा दे, जो मांग यहां पर रहती है
अस्तित्व मिटाती नारी का वह, देश कलंकित करती है
प्रेम में बढ़ाकर दर्द मिटा दे, मानव की भाषा कहती है
करें सुरक्षा नारी की जो, कष्ट यहां पर सहती है
सोच के देखो दिल में अपने, क्या दौलत सब पर भारी है
जनमानस क्यों बेसुध रहता, यह कैसी लाचारी है
-राम सेवक वर्मा
विवेकानंद नगर, पुखरायां,
कानपुर देहात, उत्तरप्रदेश