सच बोलने की पीड़ा: प्रार्थना राय

छल से भरी दुनिया में
‘प्रार्थना’ तेरी कोई दरकार नहीं
सच बोलने की पीड़ा का
बोझ उठाना आसान नहीं 

अधिकारों की बात करती हूं
सम्मान के लिए लड़ती हूं
इंसानों से प्रेम करती हूं
बेईमानों से दूरी बनाती हूं 

बेटा-बेटी के कर्म में अंतर
नहीं भेद सभी को समझाती हूं
कौन पढे़ गृह विज्ञान, कौन पढे़ गणित
विषय पक्षपात से लोगों का ध्यान हटाती हूं 

दस पुरुषों के बीच में
एक स्त्री बोल नहीं सकती
असमानता से ग्रसित
समाज के भ्रम को मिटाती हूं

सरकार पर आँखें मूंद के
विश्वास नहीं कर सकती
सही गलत पे उंगली
उठाने का ताब रखती हूं

बलात्कार से पीड़ित बच्ची
की आवाज उठाती हूं
दहेज की आग में झुलसी नवेली
के आंसू का हिस्सा बनती हूं

उस बहन की आवाज उठाती हूं
जो अपने घर में सम्मान पा न सकी
उस सुहागन की आवाज उठाती हूं
जो घरेलू हिंसा से पीड़ित हैं

हद तो तब बढ़ जाती
जब सब कहते
चुप कर इतनी भी खरी बोलने
की आदत तेरी ठीक नहीं

कोई कहता पत्रकार बन जा
कोई कहता अखबार में छप जा
खूब तमाशा होता यहां, जब
अपनी आवाज उठाती कोई बेटी

वीरांगना फूलन देवी
का संबोधन मिलता
नहीं समझ में आता उन्हें
वीरांगना फूलन देवी कौन थी

मैं कहती हूं बैंडिट क्वीन फिल्म
क्यों नहीं देख लेते
जाकर पूछो चंबल वालो से
फूलन नाम से जर्रा-जर्रा कांपता

सच के लिए जीती हूं 
सच के लिए मरती हूं
शायद इसलिए अपने घर में
सब के लिए पराई हूं

प्रार्थना राय
देवरिया, उत्तर प्रदेश