Thursday, May 9, 2024
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माँ- कणव शर्मा

तुम्हें खुद से पहले जागते देखा है
और सबके बाद सोते देखा है
नाश्ते को परौसने से पहले की तेरी मेहनत
और नाश्ते के बाद की
तेरी जाद्दोजेहद को भी देखा है
सूरज से पहले काम पे जाते देखा है,
सूरज के छिपने के बाद काम से आते भी देखा है
बुजुर्गो की संभालते और
बच्चों को प्यार करते भी देखा है

जान गया हूँ मैं कि दिन से पहले भी एक दिन होता है
तथा रात के बाद भी एक रात होती है
कि मेरे दिन से भी बडा तेरा दिन होता है
और मेरी रात से भी छोटी तेरी रात होती है

तुझे संसार से लड़ते भी देखा है और
गृहणी के रूप में सब कुछ सहते भी देखा है
खुद मर्यादा होते हुये भी,
घर की मर्यादा के लिये
अपनी आप बीती के आँसू छुपाते भी देखा है

तुझे खुद के बजाये दूसरों के दर्द में रोते देखा है,
दूसरों को संभालते देखा है
तुझे घर के बर्तन खरीदते और
वर्षों तक उन्हें अकेले ही सहेजते देखा है
अकेले खाना बनाते देखा है और
आखिर में अकेले खाते भी देखा है

अंधे और मूर्खो से भरे इस संसार को भी देखा है
जो ईश्वर को भूल कर ईश्वर को ही
पाने के लिये तड़पते फिर रहें है
जो घर की लक्ष्मी को मार कर
लक्ष्मी से ही दुआएं करते फिर रहें है
जो तेरा ही निरादर करके
तुझसे ही संसार की इज्ज़त मांगते फिर रहें है
जो तुझे ही मार कर
तुझसे ही जीवन दान मांगते फिर रहें हैं

और तुझे ये सब जान के अंजान बने भी देखा है
अंजान बने भी देखा है
अंजान बने भी देखा है

-कणव शर्मा

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