अंतर्मन: अतुल पाठक

अतुल पाठक
हाथरस, उत्तर प्रदेश

कोमल हृदय में पनप रहा प्रेमपुष्प,
अंतर्मन को महकाता है
मन के उपवन में प्रेमरूपी सुमन से,
उर उमंग खुमार हो जाता है

शरद ऋतु के स्वागत में अनगिनत रंगों से सुसज्जित,
प्रेम अनुराग की चादर ओढ़ आता है
ये अनजान अतुल है जो परायों को भी अपना बनाकर,
अपनेपन की छाप छोड़ जाता है

गीत मल्हार का गान होना चाहिए,
प्यार वो है जिसमें मर्यादा और मान होना चाहिए

इज़हार ए इश्क का शोर करना कोई बड़ी बात नहीं,
ख़ामोशी समझने वाला इंसान होना चाहिए

दिल के दर्द जिससे छिपते नहीं छिपते,
आईनेख सके आईने की तरह और कदर जाने दिल की
ऐसा कदरदान होना चाहिए