अणु- कमलेश

एक कणकण एक क्षणक्षण
कह रही प्रतिपल सतह से
क्रूर कितना हो गया ये
भू प्रस्तर शौल अस्तर
एक कण कण एक क्षण क्षण

चीर कर वक्ष उत्पाद कर दे
आज घन पे राज करले
टोकती है कौन जाने
पृथ्वी को सोख आने
एक कण कण एक क्षण क्षण

कला इसी है कृति यह
कम्प हो भूकंप ला दे
धूल सी इसकी सिरा है
वायु से सदृश्य घिरा
एक कण कण एक क्षण क्षण

-कमलेश