जीवन एक संघर्ष- डॉ एस. शेख

मां के पेट से बाहर आना,
नये मौसम नई दुनिया में रहना,
अलग अलग रोगों से लड़ना,
नन्हे पैरों पर खड़ा होना,
खड़ा हो कर फिर निचे गिरना,
निचे गिर कर फिर उठ जाना,
उंगली पकड़ कर आगे बढ़ना,
अपनी व्यथा को कह नहीं पाना,
यही तो संघर्ष है….

कच्ची नींद में उठना और रोना,
वजन से ज्यादा बस्ता उठाना,
बिन चाहे स्कूल जाना,
अलग अलग भाषाएं सीखना,
फिर टीचर कि फटकार भी सुनना,
यही तो संघर्ष है…..

मैथ केमिस्ट्री बायो पढ़ना,
समझ ना आए तो फिर से पढ़ना,
एक्स्ट्रा ट्यूशन क्लास लगाना,
रात रात भर रट्टा मारना,
परीक्षा में प्रथम आना,
यही तो संघर्ष है….

परीक्षा के बाद प्रतियोगिता देना,
अब पहले से भी ज्यादा पढ़ना,
किताबी कीड़ा बन जाना,
हॉस्टल का खाना खाना,
घर की याद में चुपके से रोना,
नींद ना आए फिर भी सोना,
यही तो संघर्ष है….

फिर डिग्री लेकर दर बदर भटकना,
दफ्तरों के चक्कर लगाना,
भूखे प्यासे मिलो चलना,
रेजक्ट होकर घर वापस आना,
पिताश्री का प्रवचन सुनना,
आस पड़ोस के ताने सुनना,
और अंदर ही अंदर जलते रहना,
यही तो संघर्ष है…..
और संघर्ष ही जीवन है..

नौकरी मिली तो बॉस की सुनना,
बिना थके हारे काम करना,
टारगेट का पीछा करना,
प्रमोशन के सपने देखना,
ओवरटाइम ड्यूटी करना,
बॉस की शॉपिंग करना,
लेट हुआ तो बीबी की सुनना,
यही तो संघर्ष है…..

हजार की सैलरी में,
लाखो का ख़्वाब बुनना,
भाई की पढ़ाई देखना,
बहन की शादी कराना,
बच्चों को स्कूल भेजना,
मा बाप को चारो धाम घूमाना,
यही तो संघर्ष है…..

एक बाप बनकर फ़र्ज़ निभाना,
अपने आंसू अपने पी जाना,
बच्चों का भविष्य बनाना,
अपने दुख दर्द भूल जाना,
जब तक है लड़ते रहना,
यही तो संघर्ष है और इसी का नाम जीवन है।
हर लम्हा संघर्ष है।

-डॉ एस. शेख