दर-ब-दर- संगीता पाण्डेय

कोलतार पुती काली चमचमाती सड़को पर
लोगो का रेला
निकल पड़े अपनी जड़ों में तलाशने अपनेपन को
टिन की छत और चारदीवारी
थोड़े टूटे-फूटे बर्तन एल्युमिनियम के
थिगली लगी कुछ कथरियों की
बरसों से जुटाई जायदाद छोड़कर
निकल पड़े पोटली में कुछ कपड़े
कुछ जरूरी कागजात समेत कर
लम्बा रास्ता
न पीने को पानी न खाने को अनाज
पैरों में पड़े छाले म्लान चेहरा
चिलचिलाती धूप में सैकड़ों मील
बस चलते जाना
हो कर दर-ब-दर

-संगीता पाण्डेय
असिस्टेंट प्रोफेसर हिंदी,
होलीक्रास वीमेंस कॉलेज,
अम्बिकापुर, सरगुजा, छत्तीसगढ़