प्रेम का हक- रूची शाही

प्रेम का हक
क्यों छीना गया उन स्त्रियों से
जो ब्याह दी गईं,
प्रेम को महसूस करने से पहले ही

अब उन्हें हक नहीं है प्रेम का
क्योंकि सज़ा ली उन्होंने
चुटकी भर सिंदूर के साथ
सैकड़ों जिम्मेदारियाँ अपनी माँग में ,
बांध ली उन्होंने अपने मन की
हर टीस अपने जूड़े में
और सोच लिया यही जीवन है

खुश हैं वो स्त्रियाँ अपना
घर संवारते हुए
बच्चों को दुलारते हुए और
शौहर के स्वभाव में
अपने लिए प्रेम और आस्था
तलाशते हुए

पर कभी-कभी
अनमनी सी हो जाया करती हैं
अक्सर महीने के उन चार दिनों में
घिर जाती हैं उदासियों के काले बादल से
सारी संवेदनाएं मुखर हो जाती हैं तब
और खुद के प्रश्नों से
मन उद्विग्न हो जाता है उनका

पर एक दिन थक कर
जाकर बैठ गईं वो स्त्रियाँ
अपनी देहरी की चौखट पर
और अजनबी ठंडी हवाओं के झोकों में
मिल गया उन्हें मुट्ठी भर सुकून
अब दुनिया चाहे इसे जो समझे
प्रेम पर थोड़ा हक तो उनका भी है

-रूची शाही