मैं अलग हूँ- मनीषा पांडेय

हाँ, मैं हूँ थोड़ी अलग, शायद सबसे अलग
क्योंकि देश जैसे बंट रहा,
मैं किसी एक भाग में नहीं
मेरा देश ऊपर है सबसे,
संविधान से बड़ा कुछ नहीं
मैं हिन्दू हूँ और मुसलमानों की भी इज़्ज़त करती हूँ
मैं अपने अधिकारों को जानती हूँ
और उनके अधिकारों का भी मान रखती हूँ
हाँ, मैं हूँ थोड़ी अलग, शायद सबसे अलग

मेरा जन्म ही वहां हुआ, जहां वो भी बसते थे
वो हमारी खुशी में खुश होते थे, हम उनके साथ भी हँसते थे
वहां मंदिर की घंटियां भी बजती थी
और अजान की आवाज़ भी
शंख की ध्वनि सुनाई देती थी
और पांच बार का नमाज़ भी
हाँ, मैं हूँ थोड़ी अलग, शायद सबसे अलग

मैंने ईद पर सेवइयां भी खाई है
और उन्होंने होली का गुझिया भी
उन्होंने दीवाली पर दीप भी जलाए हैं
मैंने देखा है ताजिया भी
नवरात्रि में दुर्गा पूजा में वो भी जाते थे
और हम उनके इफ्तार के लिए पकवान भिजवाते थे
उन्होंने हमारी पूजा का प्रसाद भी खाया है
और हमने उनकी चढ़ाई सिन्नी भी
हाँ, मैं हूँ सबसे अलग, शायद सबसे अलग

शादियों में खूब रौनक होती थी
सजावट उनके घर पर भी होती थी
बेटियां हमारे घर विदा होती थी
तो आंसू उनकी आंखों में भी होते थे
बहुएं उनके घर आती थी
तो तोहफे हम भी भिजवाते थे
मैंने नही देखा उनकी आंखों में कोई जेहाद
मैंने नही देखा अपनी आँखो में कोई नफरत
हाँ, मैं हूँ अलग, शायद सबसे अलग

-मनीषा पांडेय