ये दुनिया है- अनुश्री दुबे

अब ज़ख्मों की दवा कहां से लाऊं।
सच बोले वो ज़ुबां कहां से लाऊं।

बुराई का जहर घुल गया फिजा में;
अच्छाई का धुंआ कहां से लाऊं।

ये दुनिया है खुदगर्जी में डूबी सारी;
तुमको सुन ले सभा कहां से लाऊं।

मन है, भर दूं जहां को खुशियों से;
पर खुशियों का कुंआ कहां से लाऊं।

परमात्मा सबका एक है जहां में;
सबका ईश्वर खुदा कहां से लाऊं।

अब भाई, भाई के खून का प्यासा है;
एकता दे वो हवा कहां से लाऊं।

अब नफ़रत भरी सभी के मन में;
अच्छा इंसां भला कहां से लाऊं।

‘अनु’ जलते दूसरे को सफल देख;
अनुराग अब बहा कहां से लाऊं।

-अनुश्री दुबे