सत्य- रजनी शाह

हर बार खुद को
इन्सानों के बीच
असुरक्षित ही पाया है
थोड़े से ही विश्वास को
हर बार टूटता पाया है
यूं तो आदत सी बन गई है
प्यार करने की
और
इस मझधार से
तैर कर फिर
अपने किनारे तक
आ जाने की
जीवन के इस खेल में
मजा भी बहुत आता है
कभी टूटन, चुभन का
एहसास ही नहीं होता
क्योंकि लोग होते ही है
विश्वास करो, धोखा दो और
आगे बढ़ते चलो के लिए
ऐसे लोगों से दुख कैसा
कभी मोह के जंजाल में
नहीं फंसी
दुख के सागर में
गोते लगाने के पहले ही
मैं खुद तक
लौट आयी हूँ
मजा आने लगा है
अकेले जीवन का
सफर तय करने में

-रजनी शाह