दीपोत्सव संदेश: गौरीशंकर वैश्य

वनवासी प्रभु राम सिय,
बिता चतुर्दश वर्ष।
घर लौटे साकेत जब,
दीपक जले सहर्ष।

अंधकार पर जीत हित,
जलते दीप सगर्व।
देता जय संदेश शुभ,
दीपावलि का पर्व।

तमसो मा ज्योतिर्गमय,
सारस्वत युग-धर्म।
सद्प्रवत्तियों से जुड़ा,
दीपावलि का मर्म।

मिटे अँधेरा हृदय से,
फैले दिव्यालोक।
जनजीवन से दूर हो,
भूख, रोग, भय, शोक।

अमा रात्रि में दीप मिल,
करते चेतन-यज्ञ।
मर्म समझ शुभ कर्म का,
मानव बने गुणज्ञ।

सर्वे सन्तु निरामया,
सर्वे सुखिनः सन्तु।
जोड़ें ज्ञान-प्रकाश से,
स्नेहिल जीवन-तन्तु।

बने दीप मानव स्वयं,
करे अँधेरा दूर।
अन्यायी की एकदिन,
होती सत्ता चूर।

सिद्धि मिले संकल्प से,
साधक दीप अनन्य।
ज्योति हेतु बलिदान दे,
करता जीवन धन्य।

रुई की बत्ती, तेल सँग,
मिले, जले शुभ दीप ।
भयवश पास न आ सके,
तम बलवान महीप।

आओ! हम मिलकर चलें,
शुभ प्रकाश की ओर।
नव ऊर्जा से काट दें,
तम-पतंग की डोर।

गौरीशंकर वैश्य विनम्र
117 आदिलनगर,
विकासनगर, लखनऊ,
उत्तर प्रदेश-226022