इश्क़ का दर्द: रकमिश सुल्तानपुरी

वक़्त लगता पुरानी सदी की तरह
आदमी न रहा आदमी की तरह

हाव से, भाव से, बात व्यवहार से,
लोग लगने लगे अजनबी की तरह

किससे लेता भला मशविरा यार मैं,
हर कोई चुप यहाँ ख़ामुशी की तरह

हर कोई है यहाँ सच से वाकिफ़ मगर,
झूठ फैला हुआ चाँदनी की तरह

इश्क़ का दर्द दुनिया में मशहूर है
दर्द कोई नहीं आशिक़ी की तरह

मयकशी में यहाँ इश्क़ का ज़ीस्त से,
रब्त बनता नहीं शायरी की तरह

उम्रभर का तज़ुर्बा है ‘रकमिश’ मेरा ,
आईना है कहाँ ज़िन्दगी की तरह

रकमिश सुल्तानपुरी