सतरंगी स्वर्ण आभा से स्वप्न: अमीता सिंह

स्वप्न सलोने सतरंगी स्वर्ण आभा से
आंखों में हर घड़ी पलते-बढ़ते रहते
सांसों की कच्ची डोर में पिरो-पाग कर
हम सपनों की लड़ियाँ  बुनते रहते हैं

पलकों की स्लेट पटल पर मेरी,
लिखा हर अरमानों का स्वप्निल
गीत है,बैठकों में नयन युगल की
कहां स्वप्न बिन सजती कोई संगीत है

अक्सर आँखों में आकर
कर जाता गीला काजल
नन्हा ख्वाहिश का बादल
देखो सपनों को आकार देकर
नयनों में सबके मोती सा जड़ा है

तपिश जहां की झुलसा ना दे
मेरी कोमल किसलयी स्वप्न को
छाया देती रहती, नयन चिलमन की
बनकर हमजोली,साथ रहती स्वप्न सुंदरी

बिन साजन देह-अगन सुलगता
बिन सावन मन-तपन है दहकता
मुँदी-मुँदी-सी इन अँखियन कोरों में
स्वपन नीत नवीन हर पल बरसता है

पिया बिन जिया में ये कैसी कल-कल
जल बिन ज्यूँ मीन में होती है हलचल
सपने ले आते घनेरे बदरा के दल-बल
मन-पोखर के ताल-तलैया में हर पल
सुंदर रंगीन कमल-पुष्प स्वप्न खिलाता है

न जाने कब ये दिलों में समा जाते हैं
रुप बदल-बदल के ये सबसे मिलते-जुलते हैं
सपने हर पल नैनों में मोती से झरते रहते हैं
मन-मधुबन-सीप में नीत उगते ढ़लते रहते हैं

स्वपन का कोई रूप नहीं, आकार नहीं
ये तो बस मुस्कराते हुए चेहरों में खिल जाते हैं,
करुणामय हृदय में रीस जाते हैं,
उम्मीद भरी आँखों में उग जाते हैं,
कभी आँसू बन के बह जाते हैं

अमीता सिंह
रीवा, मध्यप्रदेश