पुस्तक समीक्षा- छोटी-छोटी पंक्तियों में बड़े-बड़े पाठ: सोनल ओमर

Manohar Suktiyan

छोटी-छोटी पंक्तियों में बड़े-बड़े पाठ।
जैसे मुक्ति के लिए काशी-संगम घाट।।

इन पंक्तियों द्वारा मेरा तात्पर्य “सूक्तियों” से है। कही गई सुंदर उक्ति, पद, वाक्य या पंक्तियाँ- सूक्तियाँ कहलाती है। ये देखने में एक-दो पंक्तियों के साधारण सरल वाक्य होते है, लेकिन इनमें जीवन के गूढ़ रहस्य छुपे रहते है, जो मानव को जीवन के प्रत्येक कदम की सीख प्रदान करती है।

ऐसी ही प्रेरणादायक, जीवन उपयोगी, शिक्षाप्रद, उत्साह से लबरेज सूक्तियों का पिटारा मुझे महान सूक्तिकार “श्री हीरो वाधवानी जी” द्वारा उनकी पुस्तक “मनोहर सूक्तियाँ” के रूप में प्राप्त हुआ। जैसे-जैसे मैंने ये पुस्तक पढ़ना शुरु की, मुझे ये आभास हुआ कि यह केवल एक किताब नहीं है अपितु नीतिपरक जीवन-सार है।

लेखक ने सिर्फ ज्ञान देने के लिए इसे नही लिखा है अपितु जीवन के हर पहलू को नजदीक से देखा है, अनुभव किया है और तब अपने अनुभव से बात लिखी है। तभी तो आजकल के कविता, कहानी, उपन्यास जैसी विधाओं के चलन के समय में अपनी अभिव्यक्ति को सूक्ति के रूप में लिखना, सचमुच अद्भुत कार्य है। और ये अद्भुत कार्य हीरो वाधवानी जी ने किया है। वे स्वयं लिखते है कि- “श्रेष्ठ सूक्तियाँ सोने के कण है।”

इस पुस्तक के माध्यम से लेखक ने पाठकों को जीवन की सही राह दिखाने का काम अपनी सूक्तियों द्वारा किया है। उन्होंने कितना सुंदर उपदेश दिया है कि- “बिस्तर पर लेटना विश्राम नहीं, कार्य का समापन, विश्राम है।”

अर्थात बिस्तर पर लेटकर सिर्फ शरीर को आराम मिल सकता लेकिन व्यक्ति यदि अपने नियत कार्य का समापन कर लेता है तो उसे शरीर के साथ-साथ  मानसिक आराम की भी प्राप्ति होती है।

उनके विचार आदर्शवादी व साहस से भरपूर है- “बहादुर, दुख, तकलीफ़, आँधी और तूफान से नही डरता है, कायर परछाई से डर जाता है।”

उनकी सूक्तियाँ लोगों को गलत और गलतियों के खिलाफ आगाह भी करती है – “चापलूस, चप्पल की तरह होता है, कीचड़ उछाल सकता है।” “सबसे बड़ा विकलांग अहंकारी होता है, क्योंकि उसके पास आँखे, कान, बुद्धि और दिमाग नही होता है।”

लेखक श्रेष्ठ इंसान व उसके गुणों की परिभाषा कुछ इस तरह देते है- “वह श्रेष्ठ इंसान नहीं है जिसमें पच्चीस गुण हैं लेकिन क्रोध जैसा एक अवगुण है।” “सद्गुणों में सुंदरता से अधिक आकर्षण होता है।”

वे इंसान की पहचान शारिरिक सुंदरता को नही अपितु उसके गुणों, नम्रता और व्यवहार को मानते है- “वाणी पहचान पत्र है।”

वे प्रेम और स्त्री के महत्व को वृक्ष की जड़ और ईश्वर तुल्य मानते है- “प्रेम के बिना इंसान ऐसा है जैसे जड़ों के बिना वृक्ष।” “चंद्रमा सूर्य का और नारी ईश्वर का अधूरा कार्य पूरा करते है।”

और भी ऐसी कई नैतिक, यथार्थपरक सूक्तियाँ है जो मन को छू जाती है – “गलतियां बताने वाला शिक्षक की तरह होना चाहिए, निंदक की तरह नहीं।” “स्त्री का मायका उसके लिए मंदिर की मूर्तियां है, उनका अपमान उसके लिए असहनीय है।” “शरीर फौजी जैसा, व्यस्तता माँ जैसी और दिमाग वैज्ञानिक जैसा होना चाहिए।” “दो पड़ोसियों के बीच में काँटो की बाढ़ नहीं, तुलसी के पौधे होने चाहिए।”

निष्कर्ष: यह कहूँगी कि हीरो वाधवानी जी की यह किताब गागर में सागर भरने जैसा कार्य करती है। इनकी भाषा सीधी, सरल, सहज, स्पष्ट व संयोजित है। इन्होंने मानव जीवन के साथ-साथ समुद्र, नदी, तालाब, कुआँ, वृक्ष, फल-फूल, जीव-जंतु, सूरज-चाँद-तारे, धरती-आकाश आदि के माध्यम से भी ज्ञानवर्धन किया है। इनकी सूक्तियाँ व्यक्ति की चेतना को झकझोरती है, उसे स्वमूल्यांकन के लिए एवं जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेरित करती है। यह पुस्तक हर आयु वर्ग के पाठक के लिए उपयोगी है। अतः इसे सभी को जरूर पढ़ना चाहिए।

पुस्तक- मनोहर सूक्तियाँ
लेखक- हीरो वाधवानी
प्रकाशक- के. बी. एस. प्रकाशन, दिल्ली
संस्करण- प्रथम 2020
मूल्य- 450

समीक्षा- सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश