जल रही हो जिसमें
लौ आत्मज्ञान की
समझ हो जिसको
स्वाभिमान की
हृदय में हो जिसके
करुणा व प्रेम भरा
बाधाओं व संघर्षों से
जो नहीं कभी डरा
अपनी संस्कृति की
हो जिसको पहचान
भेदभाव से विमुख
करे सबका सम्मान
स्वदेश से करे जो
प्रेम अपरम्पार
जानता हो चलाना
कलम व तलवार
राष्ट्र निर्माण में जो
सदैव बने अगुवा
वास्तविक अर्थों में
वही होता है युवा
आलोक कौशिक
साहित्यकार एवं पत्रकार
मनीषा मैन्शन, बेगूसराय,
बिहार-851101,
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